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जिंदगी-देव कांत मिश्र दिव्य

ज़िन्दगी 

छोटी-सी ज़िन्दगी को यूँ न गवाँना है।
इसे नित नई खुशियों से सजाना है।। ज़िन्दगी में आएँगे कभी खुशी तो कभी ग़म
डटना है सामने पर नहीं इससे घबराना है।।
कुछ परोपकार कर ले तू अपने जीवन में
यह क्षणभंगुर ही है यह भाव बताना है।। भूखों को दें भोजन असहायों को सेवा
अपना स्नेह उपकार ये भाव दिखाना है।।
कभी शिक्षा तो कभी रक्त दान करके हीं
इस सफ़र में कुछ न कुछ पुण्य कमाना है।। जीवन में आए जो संकट की घड़ी कोई
एक दूजे से मिल-जुल हाथ बँटाना है।। कौन नहीं चाहते उजाले की नई आस हो। ऐसा ही सतत उज्ज्वल भाव दिखाना है।।
काँटों में थपकी लेते उस गुलाब फूल देख
नित् संघर्ष से अपनी सुगंध बढ़ाना है।।
पानी के बुलबुले की भाँति इस जीवन पर
सत्कर्म मेहनत का नया रंग जमाना है।।
उत्साह लगन ईमानदारी से इस जीवन में
स्नेह-प्रेम का दिव्य प्रसून खिलाना है।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

मध्य विद्यालय धवलपुरा

सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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