जीवन की मुस्कान
बहुत दिनों के बाद आज
फिर से कुछ याद आया,
कोरे कागज ने फिर
मन को है गुदगुदाया।
ऊँगलियाँ लेखनी संग
करने लगीं अठखेलियाँ,
सोच सोच मन मेरा
देखो फिर मुस्काया।
जीवन की उलझनों में
मैं कुछ इस तरह थी उलझी,
जतन किये सारे,
फिर भी ना सुलझी।
फिर छोड़ दिया मैंने खुद को
थपेडों के आगे,
क्यूँ भागे है मनमा
आगे ही आगे।
कहीं न कहीं तो
किनारा मिलेगा,
कहीं तो हमें भी
सहारा मिलेगा।
फिर आएँगी खुशियाँ
हमारे भी आँगन,
फिर होगा चमन में
भंवरों का गुंजन।
और जिंदगी फिर से खिलखिलाएगी,
जीवन की बगिया फिर
मुस्कुराएगी।
प्रीति
कन्या मध्य विद्यालय मऊ
विद्यापतिनगर, समस्तीपुर,🙏
0 Likes