जीवन तो सीखते जाना है
सुख से सीखें, दुःख से सीखें
खुशियाँ हो या गम से सीखें
मैत्री भाव हो व्याप्त जगत मे
रिपु अपना कोई नहीं
अपनों का सम्मान करें हम
गैरों से वैर भाव नहीं
गर रिपु माना भी तो
उनसे भी कुछ सीखना है
जीवन तो, सीखते जाना है ।
आलोचक हो या प्रशंसक
दोनो ही वंदनीय हैं
एक से होगा परिमार्जन
दूजे बढावें आत्म सम्मान
पल भर झांके अन्तर्मन
कहीं किसी का स्वार्थ नहीं
गैरों से क्यों संवर्धन
अपनो के बीच रहना है
जीवन तो, सीखते जाना है ।
चंचल मन की गति पवन सी
इंसानो से भूलें होंगी ही
अहं भाव की बदली छंटते
विनय प्रभा की रश्मि छिटकती
जब भूलें होंगी स्वीकार्य
प्रयास सुधार शिरोधार्य
शुभ कर्मों से क्यों चूके
भूल सुधार करना है
जीवन तो, सीखते जाना है ।
मनुज अपना कर्मफल
सुख दुःख में पाता है
दोष किसे और क्यों
दिवारात्रि के आलिंगन में
नैतिकता का लें संबल
मर्यादा का रखकर ध्यान
न आहत उर होगा
निष्काम कर्म करना है
जीवन तो, सीखते जाना है ।
दिलीप कुमार गुप्ता
प्रधानाध्यापक म. वि. कुआड़ी अररिया