कोसी के पार लौटती नाव : नाविक की दर्द भरी दास्तान
नाविक चल पड़ा धीरे-धीरे,
हवा के संग, उम्मीदों की ओर
गहरे जल की गोद में छुपे,
वापसी की आस हर छोर।
सालों चले हैं सफर में,
पैरों तले दरारें गिनते,
हौसले के घाव पहनकर,
मुस्कान संभालते रहते।
आत्माएँ रंग बुनती रहीं,
आँखों ने देखे नए सपने,
अपनों ने दी उड़ान हमें,
जीवन मिले, जिए सबने।
किनारा बुलाता, आवाज़ देता,
सुरक्षा, संयम की राह दिखाता।
प्रतीक्षा में खड़े वह जन,
थोड़ा और रुकना सह जाता।
अब ज्वार का डर मिट चला है,
लहरें मन की बात नहीं बिगाड़ती।
गहराइयाँ टकटकी लगाए,
नसीब हमें डोलने न देती।
हमारे हृदय में एक चिंता,
वह बाढ़, वह अनहोनी क्षण।
सिर्फ पाने और खोने के बीच,
दर्द की निस्वार्थ छवि बनी रहे।
सदी पर दीवारें खींच लें चाहे,
अर्थ वहीं रह जाए छुपा।
उम्मीद है, लौटेंगे सब,
नाविक, नाव और किनारा।
प्रस्तुति – अवधेश कुमार
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर , मरौना , सुपौल

