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क्यों रोती है बेटियाँ-भोला प्रसाद शर्मा

क्यों रोती है बेटियाँ

जन्म लेकर क्या गुनाह किया
पापा की बेटियाँ,
दो आँगना की फुलवारी है
फिर भी क्यों रोती है बेटियाँ।

दो कुल को रौशन किया
पापा की बेटियाँ
कहीं ममता की कली तो
कहीं सुन्दर सी परी है 
है बेटियाँ।

जब वह लक्ष्मी का रूप लेकर धन बरसाया बेटियाँ,
बन कोकिला, चेनम्मा, झांसी
देश बचाया बेटियाँ।

अंगुली पकड़ कर चलना सीखा पापा की बेटियाँ,
ठुमकते-ठुमकते असमान को चीर गई बेटियाँ।

दो घर तो उनकी अंगुलियों
पे राष्ट्र भी चला दिया,
छलांग हिमालय की चोटियाँ
चाँद पर भी निहार लिया।

जब शक्त होती है बेटियाँ
परिस्थितियों के आर में,
बाँध लेती है संसार को
अपने ही व्यवहार में।

डर कर भी सिकुड़ जाती है
हैवानियत के गाँव में,
कितने वीर-सपूतों को
झुकते देखा उनकी पाँव में।

वह नफरत का खजाना है अगर, तो समुंद्र सा बहाव भी
धधकती ज्वलन की अंगार
तो स्वच्छ, निर्मल, शीतल छाँव भी।

पापा की दुलारी वो ननदी,
जेठानी की न्यारी भी,
नटखट भी वह कृष्णन के
मधुवन के श्याम पुजारी भी।

कर सुसुप्त तीनों देव को
सृष्टि हिला दिया,
अहंकारी तीनों देवियाँ
सर्वोपरि अनुशुईया को मान
लिया।

क्यों हीन भाव में जीती-जगती है बेटियाँ,
सत्यता को शिद्ध करने
अग्नि-परीक्षा देती है बेटियाँ

लता, उषा, श्रेया बन संगीत
निखारती है बेटियाँ,

जन्म लेकर क्या गुनाह
किया पापा की बेटियाँ, दो अंगना की फुलवारी है
फिर भी क्यों रोती है बेटियाँ।

भोला प्रसाद शर्मा (शिक्षक)
प्राo विo गेहुमा (पूर्व)
डगरूआ, पूर्णिया

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