माँ मैं तेरी बेटी हूँ
माँ! मैं तेरी बेटी हूँ,
तेरे खून का कतरा हूँ
मत बनने दे मुझे किस्सा तू
बस आने दे जग में मुझको तू
खुली हवा में जीने दो
कोख सलामत रहनो दो
मुझको साँसे लेने दो!
आँचल में छुपा लो मुझको
माँ! मैं तेरी बेटी हूँ,
तेरे जिस्म का हिस्सा हूँ
मत बनने दे मुझे किस्सा तू।
माँ! मैं तेरा दर्द सहूँगी,
सुख दुःख की साथी बनूँगी
कष्ट जब कुछ होगा तुझको
किसी से न कह पाओगी
तब माँ मैं तेरी सखी बन
हर कष्ट को हर जाऊँगी
ऐसा तो तब होगा माँ!
जब तुम मुझे अभी सींचोगी
पूरा प्यार व दुलार करोगी
कल को तुम भी नाज करोगी
जग में जब मैं भी नाम करूँगी,
बताओ ऐसी बेटी को माँ!
क्या तुम कभी नष्ट करोगी?
तुम भी तो एक नारी हो
घर संसार संवारी हो।
माँ मैं तेरी बेटी हूँ,
तेरे अंग का हिस्सा हूँ…
जब तुम कभी बीमार होगी
सारे फर्ज़ मैं निभाऊँगी
पापा को भी ससमय दफ्तर मैं भिजवाऊँगी,
भाई-बहन व दादा-दादी सबकी
जिम्मेदारी, मैं बखूबी निभाऊँगी!
न सुनी रहेगी भैया की कलाई
राखी से मान बढ़ाऊँगी,
पढ़-लिखकर फिर हम दोनों
अपनी पहचान बनाएँगे।
एक दिन ऐसा भी आएगा
जब तुम मुझे डोली में बिठाओगी
सब की आँखें नम होंगी
तुम व्याकुल हो जाओगी
फिर ससुराल को स्वर्ग बनाकर
मैं मर्यादा तुम्हारी बढ़ाऊँगी।
ऐसा तो तब होगा माँ!
जब तुम मुझे दुनियाँ में लाओगी।
पलने दो मुझे कोख में तुम
बेरूखी तेरी न सह पाऊँगी
फूल से नाज़ुक है जिस्म मेरा
टूट जाएगी साँसे मेरी
तब मुझे उठाने में क्या तेरे हाथ नहीं कपकपाएँगे,
फिर “मैं” भी तो “माँ” तुमसे मिल नहीं पाऊँगी।
माँ मैं तेरी बेटी हूँ,
तेरे दूध का हिस्सा हूँ
मत बनने दे मुझे किस्सा तू।
आँचल शरण
बायसी पूर्णिया
बिहार