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माँ कहाँ-अमृता सिंह

माँ कहाँ

है राहें वही, वही पगडंडियाँ।
जिनमे रहते थे तेरे पैरों के निशां
उन निशानों में मैं तुझको ढूंढा करूँ
मेरी माँ तू कहाँ है? कहाँ है? कहाँ?

है कहने को हर कोई अपना यहाँ
पर तेरे से अपना मिलेगा कहाँ
हर चेहरे में मैं तुझको ढूंढा करूँ
मेरी माँ तू कहाँ है, कहाँ है, कहाँ?

सब कहते हैं तू आसमां में खो गयी
मुझे छोड़ चाँद तारों की हो गयी
हर सितारे में मैं तुझको ढूंढा करूँ
मेरी माँ तु कहाँ है, कहाँ है, कहाँ?

जो राह दिखलाई तुमने उसी पर चलूँ
न छल पाए कोई ,न किसी को छलूं
तुझको ही, खुद में मैं देखा करूं
मेरी माँ तू यहां है, यहां है, यहां।

अमृता सिंह
नव सृजित प्राथमिक विद्यालय डूमरकोला
चांदन बांका

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