मकर संक्रांति का संदेश
स्थितिक मकर संक्रांति का दिवस कभी न बदलता !
प्रकृति पर्व के संदेशों में, मानव जीवन सदा है सुधरता !!
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तिल, गुड़, चूड़ा, तिलकुट दूध-दही बना देता व्यवहार !
खिचड़ी, लोहड़ी, संक्रांति, कई नामों से सजता ये त्योहार !!
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विविधताओं से भरे इस प्रकृति पर्व का, नाम हैं अनेक !
स्वरुप चाहे हम कुछ भी दे दें, भावना होती है इसकी एक !!
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तिलकुट तिलवा और गुड़-काला तिल सब करते स्वीकार !
फिर खिचड़ी खाने का सदेश है, मिटते इससे कई विकार !!
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पतंग महोत्सव से भी जुड़ी हुई हैं, इसकी कई मान्यताएं !
दिल को दिल से जोड़ती, कितनी अच्छी है ये विविधताएं !!
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जीवन-चक्र यूं ही चलता रहे, प्रकृति का मानें सब आभार !
मकर संक्रांति, स्नान, सूर्यताप और जीवन जीने का आधार!!
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सुरेश कुमार गौरव
पटना बिहार
स्वरचित मौलिक रचना
@सर्वाधिकार सुरक्षित
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