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मन की स्थिरता-भोला प्रसाद शर्मा

मन की स्थिरता

 अनन्त है इसका कोई भी
उपमा दिया जाना सहज नहीं।
पर मानव जीता अवश्य है,

बिना सत्य के वह बीच भँवर में अटक जाता,

उनका मार्ग अवरोध होता दिखाई दे रहा।
वह विचार नहीं कर पाता क्योंकि
उनके तन-मन और हृदय स्थिर नहीं है।

चहता है मैं कुछ करुँ,

जिससे मेरा जीवन सफल हो।

मेरी आत्मा को शान्ति मिले।
मैं जग में नाम करुँ,

लेकिन सम्भव नहीं हो पाता।

बेचारा स्वपन की
दुनिया में इस प्रकार तल्लीन है कि
उसे पहला काम याद ही नहीं आता।
कहा जाता है कि जीवन में काम
को चार वर्गों में बाँटा गया है।
पहला अत्यावश्यक कार्य,

दूसरा आवश्यक कार्य,

तीसरा साधरण कार्य
और चौथा गौण कार्य।
अतिआवश्यक कार्य के समय
अगर हम परमात्मा का भी स्मरण करें

तो मेरा कार्य पूर्ण रूपेन सफल होगा,

परन्तु हम करते नहीं।
संसार एक मकड़ी के जाल की भांति है।

उसमें पग को चुन-चुनकर रखना पड़ता है।

न जाने किस काँटें में कब पाँव जाये
जो जख्मी होकर मुर्छित हो जाए।
इस आस्था को हमें स्मरण
हर-पल रखना होगा?

जैसे पनिहारिन की उपमा देकर-
बात पुराने जमाने की है।

आज कल की पनिहारिन तो यूँ गया
नल घुमाया पानी भरा और चल दिया।
किन्तु पुराने जमाने में उन्हें बहुत
मुश्किलों का सामना करना पड़ता
था।

वह हाथ में बालटी, सिर पर
घड़ा लेकर मीलों दूर जाती थी,
पानी भरने के लिए।

पानी भरकर वह एक घड़ा को अपने सिर पर,
दूसरे घड़े को अपने बांहों तले।
एक हाथ में रस्सी वाली बालटी। 
उनके सिर पर घड़ा बिना पकड़े
वह अपनी मस्ती में सखियों से
बातें करते चली आ रही है।
सोचिये! उनके दोनों हाथ बंद
है तो अपने सिर पर के घड़े को कैसे पकड़ी।

यही है मन की पकड़, प्रीति की पकड़,

मन की स्थिरताकी पकड़।

इसलिए मनुष्य को
चाहिए कि वह भी अपने मन
को इस प्रकार स्थिर करें ताकि
वो सत्य मार्ग को अपना सकें।
जीवन को सरस बना सकें।
अपने काम, क्रोध, मोह, माया से
परे एकांत जीवन व्यतीत कर सके ।
इसी में जन कल्याण है।

मुझसे आस लगाए हो माँ
कहती है मेरा बेटा,

पिता कहतामेरा लाल,

पत्नी कहती मेरा सपना
पुत्र कहता आप मेरे भंडार हैं।
कब तक जब तक आप परिपूर्ण हैं।

कार्य करने के लायक हैं।
उनकी आवश्यकता को पूरी
करने की हौंसला रखते हैं।

इसकेबाद आप क्या हैं?

आप केवल रसनिचोड़े हुए गन्ने की ठठरी
की तरह हैं।

आपके कल जो कह रहे थे

मेरा पति मेरा सपना है।
यह सब आज के लिए ही था।
आपका भविष्य कोई नहीं सँवार सकता

अगर आप भौतिक युगोंका बखान करेंगे

तो आप इस चक्र से मुक्त नहीं हो पायेंगे।
आपकी सारीआशाएँ-इच्छा,
मोह-माया में दब कर क्षीण हो जाएगी ।

आपकी एच्छिक शक्ति
का हनन हो जायेगा।

बस आप सिर्फ चिन्तन के अलावा कुछ
करने में विफल हो जायेंगे।

फिर आपको भ्रमित होना पड़ेगा।
बिना आशाएं लिए कि शायद इस
जीवन का आनन्द मुझे मिल
पाना सम्भव है या नहीं।

भोला प्रसाद शर्मा
पूर्णिया (बिहार)

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