मानव जीवन
मानव जीवन बड़ा धन्य है
इसे हम बताते चलें।
अपने सत्कर्मों से नित
इसे हम सजाते चलें।।
देखो! बड़े भाग से मिला
यह सुन्दर मानुष तन।
अपने शुभ सदाचरण से
इसे हम महकाते चलें।।
पल-पल मृत्यु की ओर
नित बढ़ रहा, यह जीवन।
सुपथ, प्रेम, भक्ति का
सद्ज्ञान हम लुटाते चलें।।
दीनों, दरिद्रों की सेवा से
मिलती सुख शांति है।
सुख-शांति की सरिता
अबाध हम बहाते चलें।।
जीवन क्षणिक, जग झूठा है
राग द्वेष से मन रूठा है।
निष्काम भाव से हम सदा
सम्यक प्यार लुटाते चलें।।
गुरू मातु पिता का मान करें
शिशु सम शिष्य सम्मान करें
गुरू शिष्य संबंध सुदृढ़ कर
स्नेह सुधा सरसाते चलें।।
मानव जीवन बड़ा धन्य है
इसे हम बताते चलें।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
म. वि. धवलपुरा, भागलपुर
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