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मित्र-अवनीश कुमार

मित्र

मित्र वह जो मन की बात को पढ़ ले
मित्र वह जो सारे जहां में एक
अनमोल रिश्ता गढ़ ले
मित्र वह जो हमारे सारे दोष को आईने की तरह झलका दे

मित्र वह जो गलत होते हुए भी कर्ण की तरह साथ निभा दे
मित्र वह जो दीन हीन सुदामा को रंक से राजा बना दे
मित्र वह जो कृष्ण बन जीवन के रण में राह दिखा दे
मित्र वह जो रक्त संबंध ही सर्वश्रष्ठ है को झूठला दे

मित्र वह जो गुरु बन पल पल मार्ग दिखा दे
मित्र वह जो मात बन वात्सल्य का दूजा रूप धर ले
मित्र वह जो क्रोधाग्नि को प्रेमरस में बदल दे।
मित्र वह जो हृदय से हृदय का तार जोड़ ले।

मित्र वह जो चंदन बन शीतलता का भान करा दे
मित्र वह जो चंद पैसों में ही सारे जहाँ की सैर करा दे
मित्र वह जो पिता व गुरु बन कभी कभी डाँट लगा दे
मित्र वह जो सारथी बन अर्जुन को सद्ज्ञान करा दे ।

मित्र वह जो मित्र शब्द का पर्याय बन जाये
मित्र वह जो मित्रता का उदाहरण बन जाये।

शब्द रचना एवं स्वर:-
अवनीश कुमार
प्रभारी प्रधनाध्यापक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अजगरवा पूरब
प्रखंड:- पकडीदयाल
जिला :- पूर्वी चंपारण( मोतीहारी)

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