नदियाँ
पर्वत कंदराओं से होकर
सरपट दौड़ लगाती नदियाँ
चट्टानों से टकरा टकरा कर
अवरोधों को दूर भगाती है
मैदानों के चौरस वक्ष पर
मद्धिम मल्हार सुनाती है
कलकल बहती पावन नदियाँ
इठलाती बलखाती है ।
धरा धाम को शीतल कर
उमस तपन मिटाती है
व्याकुल जीवों मे भर चेतना
प्रकृति मे हरियाली लाती है
आराम इसे है दुश्वार
नित निर्झर राग सुनाती है
कलकल बहती पावन नदियाँ
इठलाती बलखाती है ।
बंजर भू को सिंचित कर
प्यासों की प्यास मिटाती नदियाँ
निश्छल सेवा भाव दिखाकर
अंगना खुशहाली लाती है
अविरल अमृत प्रवाह कर
गीत प्रगति के गाती है
कलकल बहती पावन नदियाँ
इठलाती बलखाती है ।
प्रचंड ग्रीष्म से तप्त होकर
भाप रूप ले उड़ती नदियाँ
पूस मे ठिठुर सिमटकर
कन कन हाड़ गलाती है
वर्षा मे मौज में आकर
तट लांघ हाहाकार मचाती है
कलकल बहती पावन नदियाँ
इठलाती बलखाती है ।
मानव सभ्यता को वर देकर
निःस्वार्थ सेवा करती नदियाँ
हलाहल अपशिष्ट पीकर
जीवन का प्रतिदान देती है
अपना सर्वस्व कर न्योछावर
सिंधु में लय हो जाती है
कलकल बहती पावन नदियाँ
इठलाती बलखाती है ।
दिलीप कुमार गुप्ता
प्रधानाध्यापक
म. वि. कुआड़ी अररिया