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नव बसंत-प्रीति कुमारी

Priti

Priti

नव बसंत

बीत गए दिन पतझड़ के
अब नव बसंत फिर से आया,
खुशियों से भर आई आँखें
जीवन का कण-कण मुस्काया।

वृक्षों के पल्लव हरे हुए
मधुवन है फिर से इतराया,
बागों में महक उठी कलियाँ
है कोंपल-कोंपल हर्षाया।

खेतों में हलधर झूम-झूम
वसुधा के मन को हर्षाया,
खुश होकर देखो वसुंधरा ने
धानी चुनर है लहराया।

मदमाता बादल उमड़-घुमड़कर
आसमान में फिर छाया,
फिर चली हवाएं बासंती
पुरवा मन ही मन मुस्काया।

विहगों का कलरव आतुर मन को
देता है शीतल छाया,
दिन बीत गए अब पतझड़ के
अब नव बसंत फिर से आया।

प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ
विद्यापतिनगर
समस्तीपुर

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