निर्वाण
हे मातृभूमि वसुधा धरा वसुंधरा।
अर्पित है तेरे चरण रज लोहित मेरा।।
तू विभवशालिनी विश्वपालिनी दुःखहर्त्री है।
भय निवारिणी शांतिकारिणी सुखकर्त्री है।।
निर्मल तेरा नीर अमृत सा उत्तम।
शीतल पवन सुगंध मंद सर्वोत्तम।।
तेरी ही यह काया तुझसे बनी हुई है।
बस तेरे ही सुरस सार से सनी हुई है।।
लोट लोट कर वही हृदय को शांत करेंगे।
उसमे मिलते समय मृत्यु से नही डरेंगे।।
हे उर्वी तुझको समर्पित प्राण है।
मेरे लिए उत्तम यही निर्वाण है।।
मनोज कुमार दुबे
राजकीय मध्य विद्यालय
बलडीहा, लकड़ी नबीगंज
सिवान
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