पढ़ना है अधिकार मेरा
जब निकली मैं बस्ता लेके
रिंकी मुनियाँ रास्ता रोके
क्यूँ तुम पढ़ना चाहती हो
जरा मुझे भी कहते जा।
पढ़ने से क्या होता लाभ
जरा मुझे भी ये बता?
ओ सुन रिंकी मुनियाँ सखी
सब आजकल होता है दुखी
पढ़ना है अधिकार मेरा
आगे बढ़ना है अधिकार मेरा
पढ़ लिखकर इन्सान बनेंगे
ममता की पहचान बनेंगे
पापा का इमान बनेंगे
अपनों के सम्मान बनेंगे।
पढ़ना हमको प्रगति पे लाता
अनपढ़ का एहसास दिलाता
पढ़ना ही विकास कराता
पढ़ना ही है जग को भाता
पढ़ना ही एहसास हमारा
पढ़ना ही विश्वास हमारा
सत्य-अहिंसा ही सार हमारा
पढ़ना ही अभिमान हमारा।
पढ़ने से सब ज्ञानी होते
दिखा हौंसला कभी न रोते
धैर्य धर्म साहस न खोते
सच्चाई का बीज व बोते।
पढ़ना नींव का बीड़ा उठाता
पढ़ना ब्रह्मांड को भी छू जाता
पढ़ना अलग ही राह दिखाता
पढ़ना ही जीवन सुलझाता।
पढ़ना हमारा अमूल्य पूँजी
ऐसे न होते कोई कुन्जी
चोर इसे न छीन ही पता
बाँट न पाये कोई भ्राता।
पढ़ना हमारा कीमती गहना
कान खोलकर सुनलो बहना
इसमें न होता किसी की जागीर
निकल चले निहत्थे राहगीर।
पढ़ना कुल का रीत निभाये
पढ़ना काँटों में फूल उगाये
पढ़ना शीतल छाँव भी लाये
पढ़ना ही घर को स्वर्ग बनाये।
भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ, पूर्णिया(बिहार)