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पाठशाला से रिश्ता-एस. के. पूनम

Shailesh

पाठशाला से रिश्ता

वह खड़ा है पाठशाला के द्वार पर,
पार किया है उम्र का छठा सावन,
बाल-सुलभ मुस्कान है अधरों पर,
सजल नयनों में है आशा का दीप।
अंग-सौष्ठव है उसका मनमोहक,
भालों पर सूर्य का कांतिमय ओज,
नेत्रों में झलकता है आत्मविश्वास,
मृदुल, शांत, अप्रतिम उसका चितवन।
वह कौतूहलवश आता है पाठशाला,
उत्कीर्ण चित्रों से करने लगता है प्यार,
शब्दों के मेले में कुछ ढूंढ़ते रहता,
पर अभी संप्रेषण का है अभाव।
आत्मसात कर लिया है पाठशाला को,
प्रकट करता है अपने मनोभावों को,
प्रयत्न करता है नव सृजन करने का,
उसके लिए अद्भुत प्रयोगशाला है पाठशाला।
वह जान गया है बढ़ती उम्र के साथ,
कि सफलता का सोपान है पाठशाला,
सीखने में तल्लीन है जीवन के आयाम,
बढ़ चला है सुंदर भविष्य के पथ पर।
अटूट रिश्ता हो गया है पाठशाला से,
जैसे नदी का सागर से, चाँद का चकोर से,
शिशु का माता से, फूलों का डालियों से,
सत्य है! शाश्वत रिश्ता होता है पाठशाला से।

एस. के. पूनम

फुलवारी शरीफ पटना

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