पिता की चाहत
जीवन का अभियान पिता का,
बच्चे होते अरमान पिता का।
तिनका तिनका जोड़ जुटाया,
अपने सपनों का महल बनाया,
उसमें बसती जान पिता का।
ताकत से बढ़कर बोझ उठाया,
पेट काटकर तुम्हें खिलाया,
कल ने लिया इंतहान पिता का।
ख़ून-पसीना खूब बहाये,
जाग-जाग कर रात बिताये।
परिवार पर था ध्यान पिता का।
समय पाकर बड़े हुए तुम,
अपने पैरों पर खड़े हुए तुम,
तुम पर है एहसान पिता का।
चीख तुम्हारी सुनकर आये,
दर्द और आंसू सह नहीं पाये,
सबसे बढ़कर संतान पिता का।
जब तक वृक्ष यह हरा रहेगा,
फल, फूल भी मिला करेगा।
जीवन का अनुभव, ज्ञान पिता का।
बनकर रहना फूल की डाली,
पिता होगें बागों का माली,
बच्चे होते अभिमान पिता का।
उनके कर्ज चुका पाओगे,
यदि अपने फ़र्ज़ निभा पाओगे,
ऋणी है सारा जहान पिता का।
तुम से उनको एक ही आशा,
प्रेम वचन की है अभिलाषा,
तुमसे होगी पहचान पिता का।
नहीं चाहिए मान, बड़ाई,
नहीं चाहिए दूध, मलाई,
चाहत होती सम्मान पिता का।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
बाढ़ (पटना)