प्रतीक्षा
व्याकुल हृदय में व्यथा भरी,
मन मायूसी से घिरा हुआ,
मेरे हरि ! मेरे अंतरयामी !
प्रतीक्षा का अंत कर दो ज़रा।
कभी घोर तमस हो जीवन में,
नहीं राह दिखे उजियारा सा,
तेरी शरण में सबकुछ हासिल हो,
कभी स्वप्न में दे जाओ दिलासा।
साँसों की डोर तूने थामा,
भावों में भक्ति तुझसे है,
प्रतीक्षा तेरे दर्शन की बस,
सुख की पराकाष्ठा तुझसे है।
ज़रूरत नहीं उस धड़कन की,
जिसके झंकार में कृष्ण न हो,
झाँकू मैं अंर्तमन में जब,
बस हरि मिले, कोई और न हो।
अर्जी मेरी तुम सुनते हो,
दिखलाते हो मुझे मार्ग सदा,
टूटे जब-जब विश्वास मेरा,
सँवारा मुझको तूने सर्वदा।
मीरा, राधा सा विरह मुझे,
स्वीकार नहीं तुझसे ओ कृष्ण,
मैं तो भक्ति में रहूँ सदा,
प्रतीक्षा करुँ तेरे दर्श की कृष्ण।
नूतन कुमारी
पूर्णियाँ, बिहार
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