स्नेहसिक्त
प्रेम अमोल
यह बन्धन प्यारा
बस अनमोल
भीगी आंखें हैं
बहना की
भाई मूक विह्वल है
यह पावन पुनीत पूजा है
इस रिश्ते से
धरती धवल है
इस युग में भी
यह भाव प्रबल
शाश्वत है
अटूट है
भाई बहन की
प्रेम डोर यह
अविचल है
दिव्य है
बोलो बहना
तुम क्या लोगी
भला कैसे यह मोल चुके
कैसे कोई
प्रतिदान गहे कुछ
कलाई पर जब
अम्बर सजे…!
क्या दोगे भईया बोलो
क्या मांगेगी
बहना भला
यह स्वर रहित
संकल्पसिक्त
यह पल है सच में
बहुत बड़ा!!
स्नेहसिक्त
प्रेम अमोल
यह बन्धन
सच में प्यारा है
देखो कितना सजता है
रंग इसका कितना न्यारा है!
गिरिधर कुमार
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