रक्षाबंधन
यह अनुपम त्योहार जो आया
चहु ओर खुशियाँ है छाया
बहन प्यार से थाल सजाया
कुमकुम का भी तिलक लगाया
है भाई बहन का प्यार अनोखा
है सावन के पूर्णिमा का झरोखा
हाथ में राखी सब बँधवाया
खुशियों से सब गले लगाया
दूर-दूर से भाई आया
आकर बहना का मान बढ़ाया
दूर देख भैया का चेहरा
खत्म हुआ अब गली का पहरा
दुकानें भी अब खूब सजी है
ढोल-नगाड़े खूब बजे है
मम्मी क्या पकवान बनाई
चाट-चाट सब अँगुली खाई
कलाई भी थी आस लगाकर
खिल उठा प्यार राखी का पाकर
रंग-बिरंगी राखियाँ लाई
सब सखियाँ है उधम मचाई
कोई गाँव के छोर चले हैं
कोई बैठे हाथ मले हैं
कोई नेक पाकर मुस्काये
कोई गली में है सुस्ताये
सबसे उत्तम प्यार है बहना
सोना चाँदी न कोई है गहना
संकट में जो प्राण बचाये
भाई यही रक्षाबंधन कहलाये
सुन्दर पावन यह होता पर्व
इस पर सबको होता गर्व
यह सावन का मौसम पसरा
हर भाई बहन का प्यार है निखरा
भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ, पूर्णिया (बिहार)