चौदह कलाओं वाले सीतापति का रामचरित
मेरे आराध्य देव मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं।
रघुकुल शिरोमणि निश्छल और निष्काम हैं।।
पिता दशरथ और माता कौशल्या के दुलारे हैं।
लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न रूपी अनुजों के प्यारे हैं।।
गुरु वशिष्ठ के शिष्य चौदह कलाओं वाले हैं।
श्री विश्वामित्र संग ऋषि रक्षार्थ चलनेवाले हैं।।
अहिल्या को शापमुक्त कर स्वयंवर आ पहुँचे।
शिवधनुष तोड़ जनकनंदिनी का जीवन सींचे।।
धर्म की स्थापना हेतु चौदह वर्ष वन में बिताये।
केवट को गले लगाकर शबरी के जूठे बेर खाये।।
वीर हनुमंत जैसा भक्त, सुग्रीव सा मित्र पाया।
अंगद, जामवंत, विभीषण का भी मान बढ़ाया।।
रावण-कुंभकर्ण संहारक हर रूप में आदर्श हैं।
रामराज्य लव-कुश जनक मिथिलांचल हर्ष हैं।।
राजेश कुमार सिंह
प्रखंड शिक्षक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय बलथारा
मोहिउद्दीननगर
समस्तीपुर(बिहार)
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