कब-तक कोई अपना- गीत
छोटे-छोटे शब्दों से मन टूटेगा।
कब-तक कोई अपना हमसे रूठेगा।।
अपनों में तो खिच-खिच होती रहती है।
खट्टी-मीठी यादें बनती रहती है।।
मन का हर गुब्बारा भी तो फूटेगा।
कब-तक कोई अपना हमसे रूठेगा।।०१।।
शब्द-शब्द के अर्थ बहुत गहरे होते।
प्रेम भरे चित में भी कुछ पहरे होते।।
शब्दों के कुछ बाण वहाँ पर छूटेगा।
कब-तक कोई अपना हमसे रूठेगा।।०२।।
शब्द कभी कुछ कड़वा भी तो होता है।
अपनों से ही मरहम भी तो मिलता है।।
छोड़ दिए अपनों को तो दम घूंटेगा।
कब-तक कोई अपना हमसे रूठेगा।।०३।।
अपनों से ही संबल सबको मिलता है।
अपनों में ही मन उपवन सा खिलता है।।
मघुरस अपनों से ही कोई लूटेगा।
कब-तक कोई अपना हमसे रूठेगा।।०४।।
पद-चिह्नों को गढ़ने आगे आना है।
समरस होकर सबको गले लगाना है।।
अपनों में जो बोले दूजा कूंटेगा।
कब-तक कोई अपना हमसे रूठेगा।।०५।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

