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राष्ट्र हित का भाव जगे-विनय कुमार

राष्ट्रहित का भाव जगे

मन अर्पण मेरा तन भी अर्पण
राष्ट्र रक्षार्थ हो जाऊँ कण-कण
प्राण जाए पर बोले ह्रदय तरंग
मातृधरा का न हो पाए भंजन
भाव यहीं जग जाए जन-जन-2

राष्ट्रविरोधी सुर न सहन हो
ऐसे विचारों का ही दहन हो
राष्ट्रप्रेम का खुला गगन हो
गर्व करे भारत पे सब मन
भाव यहीं जग जाए जन-जन-2

सर्वधर्म को सम्मान यहाँ है
मिलता कहीं ऐसा मान कहाँ हैं?
भूलोक नही दूजा स्वर्ग जहाँ है
घुल जाऊँ मृण में इसके हो जाऊँ कंचन
भाव यहीं जग जाए जन-जन-2

यहाँ न कोई किंचित भी पराधीन है
सब स्वयं के ही विचारों के अधीन है
अधिकारों संग कर्तव्यों से रचा एक विधान है
विधि पालन करें हम सदा हर एक क्षण
भाव यहीं जग जाए जन-जन-2

बलिदानों से बनी है ये मिट्टी
सुध रखें सदा वीरों की आहूति
बिना इनके स्वतंत्रता कहाँ मिलती !
विस्मृत न हो बलिदानी का पूजन
भाव यहीं जग जाए जन-जन-2

जाति-धर्म का भेद मिट जाए
सभी भारतीय एक हो जाए
शत्रु-राष्ट्र तब क्या कुछ कर पाए
आवश्यक हो तो स्वयं हो जाऊँ हवन
भाव यहीं जग जाए जन-जन-2

✍️विनय कुमार वैश्कियार
आ.म.वि. अईमा
खिजरसराय ( गया )

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