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रिश्तों का मेला-मनु कुमारी

रिश्तों का मेला

सबसे सुंदर, सबसे मनहर,
होता यह रिश्तों का मेला,
मिल-जुलकर सब हँसते-गाते,
प्यार बाँटते जश्न मनाते,
कोई न रहता यहाँ अकेला।
रिश्तों का यह अनुपम मेला…

समाज की सबसे छोटी इकाई,
परिवार से होता इसका निर्माण,
आपस में सब मिलकर रहते,
खट्टी-मीठी बातें करते,
लुटाते सभी इक दूजे पर जान।
रिश्तों का यह अनुपम मेला….

जब भी होती शादी-सगाई,
मुंडन, उपनयन और गोद भराई,
जीवन में नयी उमंगें लाता,
ढेर सारी खुशियाँ भी लाता,
सब बन जाता है अलबेला।
रिश्तों का यह अनुपम मेला….

जाने-अनजाने लोग यहाँ पर,
इक-दूजे को गले लगाते,
भले स्वभाव हो अलग-अलग,
दिल आपस में जुड़े हैं रहते,
गुस्सा पल में, पल में मस्ती का खेला।

रिश्तों का यह अनुपम मेला…

इस मेले में छोटे बच्चे,
बड़ों के बाँहों में झूलते झूले,
रहते हरदम खुशियों से फूले,
जहाँ खिलता खुशियों का फूल,
कभी न पड़े गमों के शूल।
रिश्तों का यह अनुपम मेला….

रिश्तों के मेलों से रिश्तों में,
अपनापन बढता है,
रंग प्रेम का मन पर चढता,
क्लेश सभी हटता है,
मानव को समाजिक पाठ पढाने वाला,
एक सूत्र में बांधने वाला।
रिश्तों का अनुपम मेला…..

गलती होने पर क्षमा माँगना,
शील-दया का भाव रखना,
मीठे बोल सिखाने वाला,
चोट पर मरहम लगाने वाला,
विनम्रता का पाठ पढ़ाने वाला।
रिश्तों का यह अनुपम मेला…

अगर न हो रिश्तों का मेला,
सब रीति रह जाए अधूरा,
सभ्यता-संस्कृति को समझाने वाला,
रिश्तों की अहमियत समझाने वाला,
सत्य, प्रेम, समर्पण से हीं,
टिकता यह रिश्तों का मेला।
रिश्तों का यह अनुपम मेला।

स्वरचित:-
मनु कुमारी
मध्य विद्यालय सुरी गाँव
पूर्णियाँ बिहार 

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