ओ सब कुछ याद है।
वो घर के छत के चूते हुए छप्पर-छानी याद हैं,
वो सावन में रिमझिम बरसता पानी याद है।
भींग ना जाऊं, मां छुपा लेती थी आंचल तले,
ओ मां की ममतामयी कहानी याद है।
ओ भाद्रपद में मेघ की गड़गड़ाहट याद है,
ओ द्वार पर भींगते पशुओं का छटपटाहट याद है।
ओ भीगे आंगन में खाट पर दादी की कहानी याद है,
सयाना हो गया फिर भी बचपन की रवानी याद है।
ओ हरे-भरे खेतों की हरियाली याद है,
ओ दुर्गा पूजा में मेला की खुशहाली याद है।
वो धधक-धधक कर जलता रावण याद है,
वो गांव में घी के दीपक जलती दिवाली याद है।
धीरज कुमार, (शिक्षक वनस्पति विज्ञान) सर्वोदय उच्च विद्यालय अगिआंव भोजपुर
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