सफलता का मुकाम
परिस्थितियां अनुकूल न हो तो,
कुछ पा लेना आसान नहीं,
गर मिल जाए जो, आसानी से,
है वह कोई बेहतर मुकाम नहीं।
लेखा-जोखा सब छोड़ यहाँ,
मंजिल की ओर तू कदम बढ़ा,
जीवन के चंद लम्हों में तू,
सफलता का इतिहास गढ़ा।
निष्क्रियता को मन से त्याग कर,
हो सशक्त, सुंदर आगाज कर,
लक्ष्य भेद निशाना साधकर,
अपने सपनों की परवाज़ भर।
लगातार प्रयास करने के बाद,
होगी मुराद पूरी, मिलेगा आसमान,
बस! पसीने से नहाना तो सीख ले,
बनोगे मिशाल, पाओगे सम्मान।
संकल्प अगर सुदृढ़ हो,
निश्चय ही सफलता मिलती है,
गर बीज परिश्रम का बोओ,
फतह की पुष्पलता खिलती है।
स्वरचित व मौलिक
नूतन कुमारी (शिक्षिका)
पूर्णियाँ, बिहार
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