समय
हवा शुद्ध है फिर भी हम, मास्क आज लगाते हैं।
खाली सड़कें रहने पर भी, ड्राइव पर नहीं निकल पाते हैं।।
स्वच्छ हाथ रहने पर भी मिलाने पर है आज पाबंदी।
दोस्तों के साथ रहने पर भी दूर रहना है अक्लमंदी।।
वक्त बहुत है फिर भी किसी के पास नहीं हम जाते हैं।
समारोह होने पर भी किसी को घर पर नहीं बुलाते हैं।।
पास में पैसा बहुत है फिर भी खर्च नहीं कर पाते हैं।
लाचारी है बहुत मगर कहीं काम नहीं कर पाते हैं।।
सामर्थ्यवान होकर भी कुछ अरमान हैं अधूरा।
वक्त बदलने पर हर ख़्वाब होगा पूरा।।
अपनों के भी पास न जाते, मिलने से भी हैं घबराते।
और बहाना कर जाते हैं यदि हमें कोई पास बुलाते।।
रिश्तेदार बीमार पड़े हैं, फिर भी उनसे दूर खड़े हैं।
भय के मारे पास न जाते, अस्पतालों में मृत पड़े हैं।।
कैसी अद्भूत है बीमारी, केवल मानव पर है भारी?
पशु-पक्षी हैं निर्भय सारे, उनकी है आपस में यारी।।
प्रकृति का संदेश सरल है, सब जीवों से प्यार करें।
वनस्पतियों का पोषण करके अपना भी उद्धार करें।।
जैनेन्द्र प्रसाद “रवि”
म. वि. बख्तियारपुर पटना