Site icon पद्यपंकज

संभव नहीं – ब्रजराज चौधरी

 

संभव नहीं

छोड़ दें हर कुछ बस अपनी ही खुशी के लिए
ये तो संभव ही नहीं है ,हर किसी के लिये।

माना कि घर में ही रहना है ,बहुत जरूरी आज
मगर मुसीबतों से कहाँ,सबों को मिलती निजात,
मुसीबत के मारों को कैसे छोड़ दें किसी के लिए
छोड़ दे हर कुछ बस अपनी ही खुशी के लिए,
ये तो संभव ही नहीं है हर किसी के लिये ।

छोड़ दें तड़पता मरने को आत्माराम के द्वार पर
क्या ये सही होगा ? डर से कर दे सरेंडर हारकर,
कैसा संदेश जायेगा? मानवता नहीं कहलायेगा
क्या बचा लें जान?जानवरों सी संस्कृति के लिए,
ये तो संभव ही नहीं है हर किसी के लिए ।

जान है तो जहान है , ये तो मानते हैं हम
परंतु,हर जान कीमती,ये भी तो जानते हैं हम,
सिर्फ़ अपने ही जान की ,फ़िकर क्यों करें
मरना ही है एक दिन तो, सबों के लिए मरें
जीवन बचा के रखनी है, किस घड़ी के लिए।
छोड़ दे हर कुछ बस अपनी ही खुशी के लिए
ये संभव ही नहीं है हर किसी के लिये।

मध्य विद्यालय रन्नूचक
(नाथनगर)भागलपुर
ब्रजराज चौधरी
0 Likes
Spread the love
Exit mobile version