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संस्कार-गिरीन्द्र मोहन झा

Girindra Mohan Jha

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कहता हूं, व्यक्ति अपने संस्कार का ही होता है गुलाम,

सुसंस्कारवश अच्छा काम करता, कुसंस्कार से बुरा काम,

अच्छा संस्कार सत्कर्मों, सद्विचारों के चिंतन से ही बनता है,

कुकृत्यों, बुरे विचारों के चिंतन से कुसंस्कार का होता निर्माण,

संस्कार अपने कर्मों, विचारों से बनते, पूर्वजों से हैं आते,

परिवेश और संगति से भी संस्कार को मिलता आयाम,

सद्विचारों, सत्कर्मों से करो अपने उत्तम संस्कार निर्माण,

उत्तम संस्कारों को आत्मसात् कर बनाओ खुद को मूल्यवान।

……गिरीन्द्र मोहन झा

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