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शब्द पुष्पांजलि-अर्चना गुप्ता

शब्द पुष्पांजलि 

हे साहित्य विभा के किरीट विशाल !
अंतस्तल समाहित जाग्रत भाव ज्वाल,
है रस-छंद-ताल की प्रवाहित निर्झरणी
भाव विशुद्ध अंतस, ज्यों नवल प्रवाल..।

हे परमात्म ब्रह्म के अंश दिव्य महान !
अमिय सिंधु बूँद हैं देते मृदुल मुस्कान,
युगल कर उल्लासित नित खूशबू भर
सुरभित-सुवासित करते सकल जहान..।

हे पुरूषोत्तम है रचना गागर में सागर !
भावसृजन के पुष्प लेते अवसाद हर,
अनुराग समर्पित हो अलौकिक पहचान
तू निज की पहचान जो संग प्रज्ञा प्रखर..।

हे रीत-प्रीत के अनुपम शुचि वितान !
कंठ कोकिल, भावविह्वल मुख मुस्कान,
हृदयतल से गुँजित यूँ अवनि-अंबरतल
ज्यों पावन गीता संग हो हर वेद-पुराण..।

हे दिव्य पुरूष हो तेरा अपरिमित विस्तार !
निश्छल हो अभिव्यक्ति, मृदुल उदगार,
हूँ शब्दहीन, बिन सामर्थ्य किस भांति
संग-स्नेहिल हर क्षण का करूँ आभार..।

हे जड़-चेतन के ज्योतिपुंज प्रखर !
आशाा रंजित बाग के धवल पुष्कर,
दिग-दिगंत आह्लादित राग अनुराग
ज्यों मंदिर स्पंदित शुभ घंटे का स्वर..।

हे दिव्य प्रभा जग सतत सुशोभित !
जीवनमूल्य, आदर्श जिह्वा सज्जित,
मृगतृष्णा के व्याप्त निस्सीम गगन में
ज्ञान-तप-तेज से कर जग पल्लवित.. ।

हे युगपुरुष न जानूँ ध्यान-साधना अर्चन !
घुमड़ते अंतर्तम जाने कितने ही श्यामघन,
लिए मुट्ठी भर चंद साँसें जीवन की अपने
ये शब्द पुष्पांजलि हूँ करती तुझको अर्पण….।

अर्चना गुप्ता
म. वि . कुआड़ी
अररिया बिहार

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