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श्यामली सूरत की मैं दीवानी-चॉंदनी झा

श्यामली सूरत की मैं दीवानी

मनमोहन तू गिरिधर, मन को लुभाते हो, यशोदा का लल्ला, नंद का गोपाला, देवकीनंदन, वासुदेव कहलाते हो।।

 पूतना का दूध पिया, दानवों को मारा, और विषधर कालिया को नचाते हो।

यमुना तट पर तुम खेले, गोकुल का ग्वाला, वृंदावन के कुंजबिहारी, तुम तो मुख में जगत दिखाते हो।।

 गोवर्धनधारी, मुरली बजाते मुरारी, तुम माखन चुराकर खाते हो।

  तू करता लीला, लीलाधर, मधुर-मधुर मुस्काते हो।।

 दूध-दही, माखन-मिश्री जो न देती,

यमुना किनारे, गोपियों के वस्त्र भी चुराते हो।

 झूठ बोल मैया से वन को जाते, राधा संग रास रचाते हो।।

 दाऊ के कन्हैया, उद्धव के माधव, बांसुरी के धुन पर, गोपियों को नचाते हो। 

बंसी के धुन पर सब को लुभाते, तो एक उंगली पर गिरी भी उठाते हो।।

 तू कितना नटखट है भोला, मटकी फोड़ गोपियों को सताते हो।

 तू है अनंत कन्हैया, गोविंदा, कंस को मारकर धर्म को बचाते हो।।

 सुदामा के मीता तुम, मोर पंख तेरा लुभावना, गोपी के किशन कहलाते हो। 

 मित्रता तेरी है अनमोल, इसलिए सुदामा से तेरी यारी, दोस्ती का मतलब बताते हो।।

 तू है कृष्ण, मनोहर, मदन, गोपाल, द्वारिकाधीश, तुम सुनते सबकी पुकार, भरी सभा में द्रोपदी की लाज बचाते हो।

 महाभारत युद्ध में चक्रधर, अर्जुन के सारथी, गीता का ज्ञान देकर धर्म का पाठ पढ़ाते हो।।

 तू आनंद विभोर कर, नंदकिशोर, जगत रचैया, गैया भी चराते हो। 

विष्णु, हरि, जनार्दन, दीनानाथ, तुम राधा के होकर, प्रेम की मिसाल दे जाते हो।।

तेरी सांवली सूरत, मोहनी मूरत, तू मेरा कान्हा,  होली में रंग बरसाते हो।

केशव, माधव, दीनदयाल, माखनचोर, मुकुंद, श्यामसुंदर, वरण चितचोर, आंखों में बस जाते हो।। 

 मीरा तेरी दीवानी,  तुम राधा के दीवाने,

रुक्मणि के  प्राण प्यारे,  तुम सबके हो जाते हो।

 तेरी मोहनी मूरत, “श्यामली सूरत की मैं दीवानी,” जब भी बुलाऊं तुम किसी न किसी रूप में चले आते हो।।

चॉंदनी झा

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