सीखना जीना जैसे
सतत अविरल
चलते रहना
सबक यह पूरा नहीं होता
यह रास्ते खत्म नहीं होते कभी
यही सौंदर्य
अद्वितीयता भी यही
अधूरा और पूरे के बीच की
समतल और
चढ़ाइयाँ
कभी गह्वर
कभी ऊंचाईयाँ
और रहना होता है
एक शिक्षार्थी ही
एक बच्चा ही
एक विद्यार्थी ही
सीखना,
जीना जैसे
हर गुंथाव को खोलने
समझने, पढ़ने जैसा
एक अध्यवसाय सा
और निश्चित नहीं कि
क्या मिलेगा
कांटे चुभेंगे
कि फूल खिलेगा!
यह सीधी जाती राह नहीं
यह भरी है विचलनों से
साधना एक एक कदम
सम्भलना मुश्किलों से
बस विवेक
प्रशस्त करता है
जो आत्म रत होता है।
प्रकृति के विद्यालय में
सृष्टि के शिक्षालय में
बस हर क्षण एक शिक्षा है
हर एक दिन परीक्षा है
यह अलग नहीं विद्यालय से
हर आदमी
एक बच्चा है।
सीखना,
हाँ जीना जैसे
जैसे सुधा गरल के
सम्मिलित पान सा
बस सन्तुलन के साथ
एक दीर्घ अभियान सा
और जो अनन्त है
और जो असीम है।
गिरिधर कुमार
म. वि. बैरिया
अमदाबाद कटिहार