शिक्षा नये मूल्य
वह शिक्षित है
ऐसा कहते हैं
उसे ठगा जाना मुश्किल है
वह ठग लेता है आसानी से
दूसरों को कहते हैं
उसे नौकरी भी लग गई है…
और अब वह श्रेष्ठ है
वह शिक्षित है इसलिए! नहीं
यह सच नहीं है फिर भी
वह शिक्षित है फिर भी
यहाँ कहाँ कुछ है
शिक्षा के अनुकूल
मनुजता के अनुकूल…
सोचना होगा ही
विचारना होगा ही
यह रास्ते किधर जाते हैं
यहाँ हम क्या पाते हैं
क्या इसलिए ही
तैयार करती है शिक्षा
क्या पूरी होती है
मात्र इन्हीं से जीवन की परीक्षा!
सोचना होगा ही
विचारना होगा ही
जो अनुभूत मूल्य हैं
जो पूज्य तुल्य है
जो हेतु हैं शिक्षा के
जीवन की परीक्षा के
जो सर्वहित कामी है
जो स्वार्थमात्र से रचित नहीं है
जो सर्वसुख से फलित है
जो मनुजता का अनुगामी है
सोचना होगा ही
विचारना होगा ही..
गिरिधर कुमार संकुल समन्वयक संकुल संसाधन केंद्र मवि बैरिया, अमदाबाद, कटिहार
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