सुबह होने सा कुछ
बच्चे अब आएंगे
अपनी किलकारियों के साथ
हमें निहाल करने
फीकी फिजां में
रंग भरने
और खिल उठा हूँ मैं भी
उल्लास से सराबोर
जैसे खोया सा कुछ मिलता है
मुरझाया फूल खिलता है
आखिर जीतता ही है जीवन
पीड़ा के अट्टहास से
फिर भी निकलता है सूरज
रात के परिहास से…
चलो, अब फिर से
अपनी राह चलते हैं
सँवारते हैं कारवां
कुछ खास करते हैं…
गिरिधर कुमार
एम एस बैरिया
अमदाबाद कटिहार
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