सुबह की रोटी
आधुनिकता के चक्कर में भईया रोटी बासी भूल गये,
सुबह का नाश्ता, मैगी-बिस्किट खाकर ख़ुद को कूल कहे।
चीनी, जलेबी, गुड़, पेड़ा, घी संग बासी रोटी भाता था,
आज के जंक-फुड से कहीं ज़्यादा पौष्टिकता भी पाता था।
रात की रोटी बची रह गई तो सुबह खुशी से खाते थे,
कभी मसलकर कभी भिंगोकर कभी बाजा ये बन जाते थे।
हम भी जो रोटी बासी खाकर आज है इतने तने हुए,
कहतें हैं नहीं सेहत को लगती बच्चे जिनके फुले रहे।
कार्बोहाइड्रेड और प्रोटीन में नहीं कभी कोई कमी रही,
दे दो कोई रूप जो इसको हर साँचे में जमी रही।
बच्चे, जवां, बूढ़े खाकर कभी दिन की जो शुरुआत कियें,
आज की पीढ़ी जान न पाती, बड़े-बुजुर्ग न बात कियें।
चलो शुरू दिन फ़िर से करतें है खाकर बासी रोटी से,
दूर करो अब इंग्लिश खाना चढ़कर हिन्द की चोटी से।
विनय कुमार “ओज”
आदर्श मध्य विद्यालय अईमा
खिजरसराय (गया )
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