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तन माटी का एक खिलौना-रानी सिंह

तन माटी का एक खिलौना

जन्म-मरण का फेरा यारों
चलता बारंबार यहाँ
तन माटी का एक खिलौना
टूटा कितनी बार यहाँ।

लिया जन्म जो मृत्युलोक में
उसको तो जाना होगा
फिर चोला नये बदन का
धारण तो करना होगा
रंग-रूप बहुतेरे सबके
भांति-भांति शृंगार यहाँ
तन माटी का एक खिलौना
टूटा कितनी बार यहाँ।

मिट्टी का यह तन है प्यारे
मिट्टी में ही मिल जाएगा
धन-दौलत अरु महल-अटारी
सब यहीं रह जाएगा
अपने कर्मफल का तू
ख़ुद होगा हकदार यहाँ।
तन माटी का एक खिलौना
टूटा कितनी बार यहाँ।

सब जीवों पर दया दिखाओ
जीवन सब में समान है
रचा जिसने इस सृष्टि को
सब उसके ही संतान हैं
है जनम सफल उस नर का
जो करता पर-उपकार यहाँ
तन माटी का एक खिलौना
टूटा कितनी बार यहाँ।

करते रहना सद्कर्म सदा
नहीं भरोसा इस जीवन का
खिल-खिल कर महकाओ जग
जैसे गुल कोई उपवन का
क़िस्मतवालों को मिलता
मानव तन उपहार यहाँ
तन माटी का एक खिलौना
टूटा कितनी बार यहाँ।

रानी सिंह

पूर्णियाँ, बिहार

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