तेरी बहना
रहे कहीं भी दूर तू मुझसे
नेह का “रंग” धूमिल हो ना,
तू तो है मेरे आँख का तारा
मैं “परदेसी” हूँ बहना !
एक डाली के फूल हैं हम
हमने सीखा संग में खिलना,
झड़ के बिछड़े एक-दूजे से
जाने हो अब कब मिलना!
बैठी हूँ “धागे” को लेकर
यादों का मैं एक सपना,
बचपन जुदा हुआ है हम से
उलझ गया जीवन अपना!
थी मैं तेरी प्यारी गुड़िया
संग तेरे हँसना-रोना,
बीता पल यादों में उतरा
भर आये मेरे नैना!
मेरा “सूरज” मेरा “चंदा”
तुझसे बस इतना कहना,
तू तो मेरा “हिम” सा भाई
मैं बहन तेरी गंगा जमुना!
बहन के प्यार के “धागे” में
हरदम ही बंधकर रहना,
दूर रहूं “मैं” कहीं जहां में
याद में तू “मुझको” रखना!
दिखलाऊँ चीड़ के कैसे
अपने “हिय” का मैं कोना,
भेज रही हूँ तुझको भाई
लाख दुआओं का दोना! 💝
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 🙏
मुजफ्फरपुर, बिहार
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