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तुमसे ही है – अवधेश कुमार

हो जाए पूरे ख्वाब, वो तुमसे ही है,
सुबह की हर शुरुआत, वो तुमसे ही है।

कहने को हर बात, है तुमसे ही,
सुनने की हर बात, है तुमसे ही।
जानने का हर राज़, बस तुमसे ही है,
दिल का हर अहसास, तुमसे ही है।

चलने की हर राह, वो तुमसे ही है,
जीवन के सारे गीत, तुमसे ही है।
जीवन के हर राग, है तुमसे ही,
सपनों का हर आग़ाज़, तुमसे ही है।

प्रकृति के हर रंग, तुमसे ही है,
इसका हर रूप, तुमसे ही है।
मिलो तो हर शुरुआत, तुमसे ही है,
ना मिलो तो आँखों में ख्वाब, तुमसे ही है।

दोपहर की धूप, और शाम की छाँव,
आने वाली हर सुबह, तुमसे ही है।
प्रस्तुति – अवधेश कुमार
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर
नोट – यह कविता लॉकडाउन के समय लिखी गयी थी , जो अप्रकाशित है ।

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