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ऊर्जा-एकलव्य

 

ऊर्जा

उर्जा मुझसे कहती है
ना तो मेरा नाश है होता
ना कोई निर्माण है करता
मेरा बस है रूप बदलता।

मेरा नाम तुम कुछ भी रख ले
ध्वनि,पवन,यांत्रिक कह ले
तू चाहे प्राकृतिक कह ले
या फिर मानव निर्मित कह ले,
घुमा फिरा के मैं ही होता
क्योंकि मैं तो रूप बदलता।

कभी सरलता कभी जटिलता
से मेरा है रूप बदलता
हजारों लाखों वर्षों के बाद
लोग मुझे जैव इंधन है कहता।

सीमित मात्रा होता मेरा
क्यों मुझको तू छेड़ा करता
सौर,पवन और जल में
प्रचुर मात्रा में संचित होता
सदुपयोग तुम करके इनका
दोहन से क्यों नहीं है बचता।।

एकलव्य
संकुल समन्वयक
मध्य विद्यालय पोखरभीड़ा
पुपरी, सीतामढ़ी

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