वसुंधरा
माँ वसुंधरा का किया प्रकृति ने अद्भुत श्रृंगार
जहां विहग भी करते हैं हरपल सौंदर्य विहार
कनक समान धरती चमकती और
आसमां भी करते मधुर मलहार……..
बहती नदियां कलकल और जहां
बहती संग झरना भी झर झर
कुहू कुहू की सुन मधुर तान
सबके होठों पर छाती मधुर मुस्कान…..
अन्न देव भी माँ पर है खूब
प्यार दुलार और खुशियां लुटाते
अन्न स्वरूप धरती पर आकर
गोद वसुंधरा की हैं भर जाते……
माँ वसुंधरा महक उठी
अमुआ की डाली पर जब
सुंदर मंजरी है आई
ओढ़ी हरे रंग की चुनरिया
छाई धरती पर हरियाली……
पाकर माँ का प्यार दुलार
धरतीपुत्र का होता कल्याण
आती वर्षा की कोमल बूंदे है
माँ वसुंधरा को आलिंगन करने……
तपती धरा धन्य हो जाती
वर्षा की ठंढ़ी बूंदे पाकर
फिर से वो खिल खिल गयी
और बन गयी जग की पालनहार।
मधु कुमारी
कटिहार
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