विनती
देना शक्ति हमें इतना विधाता,
भूल हो न कभी हमसे जरा सा।
हम सब है नादान पर संतान तुम्हारे,
तुम हो सृजनहार, पालनहारे।
गलत राह पर न चलाना हमें तुम,
बस इतनी कामना है प्रभु तुम से हमारे।
जितनी भी जियूँ ये जिंदगी मैं,
सर पे हाथ रहे सलामत तुम्हारे।
जाति-मजहब की कोई दीवार हो न,
हर तरफ मुस्कुराता सृजन हो तुम्हारा।
अब सारा जहाँ सहम सा गया है,
देख कर प्रभु रौद्र रूप तुम्हारा।
बिखर रहा जहाँ, उजड़ रही धरा है,
हर जीव विनती कर रहा है तुम्हारा।
देना शक्ति हमें इतना विधाता,
भूल होना कभी हमसे जरा सा।
सारी उलझन को तू सुलझा कर,
कर दे कंचन जहाँ को हमारा।
ज्ञान का दीप जलता रहे यहाँ पर,
खिले चहुँ ओर ज्ञान का उजियारा।
देना शक्ति हमेंं इतना विधाता,
भूल हो न कभी हमसे जरा सा।
आँचल शरण
प्रा. वि. टप्पू टोला
बायसी पूर्णियाँ बिहार
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