विवेकानंद जी ने शिकागो संदेश से जीता दिल
मातृभूमि पर जन्मा एक संत बड़ा पुराना था,
शील सी जिजीविषा थी उनकी,
वेदों के जो ज्ञाता थे,
1863 में जन्म ले धरती माता को कृतार्थ किए,
भुवनेश्वरी का लाल, जग में फैलाया अपना जाल,
नाम था उनका नरेंद्र नाथ दत्त,
रहते थे हमेशा अपने काम में रत,
रामकृष्ण परमहंस जी आध्यात्मिक गुरु थे उनके,
गुरु के पद चिन्हों पर चल,
अध्यात्म को आत्मसात किया,
मानवता के रखवाले बन,
सभी को समानता का पाठ पढ़ाया,
सारे जीवों में होता, परमात्मा का ही वास,
कथन था उनका बड़ा ही खास,
जरूरतमंदों की जो सेवा करे,
ईश्वर के बन जाएं दास,
भारतीय उपमहाद्वीप का कर दौरा,
पाया प्रत्यक्षण ज्ञान,
प्राप्त ज्ञान का कर विस्तार, 1893 में विश्व धर्म महासभा में सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया,
ब्रह्म समाज से थे रामकृष्ण मिशन की स्थापना की,
युवा थे युवाओं को उत्साहित कर जागरूक किया,
लक्ष्य थे उनके जीवट संकल्पित,
बिन पाएं न मिलता चैन,
वैसे थे युवाओं के भाल, जो थे उनके ढाल,
नारी का सम्मान, अपने धर्म का रखकर मान,
बजाकर डंका किया मातृभूमि का नाम,
किया 11 सितंबर 1893 को शिकागो में धर्म का शंखनाद,
दिखाया अपनी धमक,
बताया हमारा देश क्यों है महान,
जहां हर धर्म को मिलता है मान,
वो भारत देश महान,
दो मिनट के भाषण की शुरुआत अमेरिकी भाइयों एवं बहनों के संबोधन ने,
हर अमेरिकी का दिल जीत लिया,
प्रथम उदबोधन ने ऐसी छोड़ी छाप,
परचम लहराया तिरंगा का अपने आप,
विवेकानंद के नाम से जो जाने जाते है आज,
चलो मनाएं उनके पुण्यतिथि पर,
भारत मांता अभिनंदन दिवस महान,
आओ करें हमसब मिलकर,
आज इसका गुणगान।
✍️विवेक कुमार
मुजफ्फरपुर, बिहार
(स्व रचित एवं मौलिक)