तुमसे लगन लगी
ग्वाल-बाल संग मिल, गोपियों के घर जाते,
आदत थी छिपकर, माखन चुराने की।
गांव की ग्वालन जातीं, यमुना के तीर जब,
कदंब पे चढ़कर, वसन छिपाने की।
सुबह सबेरे उठ, रोज बलदाऊ संग,
गैया चराने खातिर, वेणुवन जाने की।
सामने तो आओ नाथ, छोड़ कर लुका-छिपी,
‘रवि’ को लगन लगी, भजन सुनाने की।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर पटना
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