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अपना सूरज – रामकिशोर पाठक

ram किशोर

विशाल आकाशीय पिंड जो,
अपना प्रकाश फैलाता है।
हम उसको हैं कहते तारे,
नभ में सदा टिमटिमाता है।
उनमें से है एक सूर्य भी,
हमारे निकट जो रहता है।
दिखे आग का गोला जैसा,
नाभिकों का विलय होता है।
हाइड्रोजन हीलियम में,
परमाणु बदलते रहता है।
एक सौ तेरह पृथ्वी जहॉं,
आसानी से रह सकता है।
है इतनी दूरी पर हमसे,
जो प्रकाश गति से नपता है।
जिसके प्रकाश को आने में,
पाॅंच सौ सेकंड लगता है।
दृश्य अदृश्य प्रकाश स्रोत जो,
पृथ्वी को उर्जा देता है।
यह जीवन कारक धरती का,
सदा अंधियारा हरता है।

राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया इंगलिश पालीगंज, पटना

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