अपनी माटी से जुड़ें
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अपनी माटी से जुड़ें, करें सदा गुणगान।
बनी इसी से देह है, यही ईश वरदान।।०१
माटी में हैं गुण बहुत, यही जीवनाधार।
रंग बनावट जानिए, इसमें शक्ति अपार।।०२
जन्म लिए यदि इस धरा, करें सदा अभिमान।
सत शिव सुंदर भाव से, गाएँ इसका गान।।०३
माटी कंचन-सी सदा, नित चमकाएँ आप।
सुरभित चंदन की तरह, छोड़ें अपनी छाप।।०४
समझें हम प्रतिदिन सदा, इस माटी का मोल।
गुणकारी है सर्वदा, ऐसा मुख से बोल।।०५
मिट्टी में होती फसल, इसमें महक विशेष।
कर्म बीज के गर्भ से, होता नव उन्मेष।।०६
अच्छी मिट्टी में सदा, फसलों की भरमार।
फसल चक्र विधि रूप ही, मजबूती आधार।।०७
अपनी माटी को सदा, मानें अपना मित्र।
महक उठे सद्भाव से, सुखद फसल का इत्र।।०८
देवकांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर
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