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आजादी – महाचण्डिका छंद गीत – राम किशोर पाठक

आजादी – महाचण्डिका छंद गीत

इसका अपना अर्थ है, सबको यह समझाइए।
आजादी के मूल्य को, जरा समझने आइए।।

सहते अत्याचार थे, ऐसा अपना देश था।
जानवरों सा हाल था, बदला सब परिवेश था।।
अपनी मर्जी से नहीं, करते कोई काम थे।
घायल तो हर शख्स था, हम-सब यहाँ गुलाम थे।।
वैसी हालत को कभी, पास नहीं बुलवाइए।
आजादी के मूल्य को, जरा समझने आइए।।०१।।

लाखों के बलिदान से, आया यह संयोग है।
अलग-थलग जब हो गए, जकड़ा तब यह रोग है।।
मंगल ग्रह की सैर को, सोच जगा जो आज है।
मंगल की वह क्रांति ही, इस युग का आगाज है।।
जानें वीर सुभाष को, बच्चों को बतलाइए।
आजादी के मूल्य को, जरा समझने आइए।।०२।।

भूल भगत आजाद को, लाल, बाल सह पाल को।
भूल गोखले को गए, उनके किए कमाल को।।
दिनकर की वह लेखनी, कहती हिंदुस्तान को।
टुकड़ों में जो बँट गए, पाएँगे अवसान को।
ताकत सबकी एकता, सबको यही सिखाइए।
आजादी के मूल्य को, जरा समझने आइए।।०३।।

शासन अपनों का यहाँ, अपना सभी समाज है।
शोषण फिर क्यों हो रहा, वही पुराना काज है।।
कुत्सित विचार हो गया, मनमानी की चाह में।
रोड़ा हम अटका रहे, आजादी की राह में।।
शान तिरंगा की रहे, जय भारत की गाइए।
आजादी के मूल्य को, जरा समझने आइए।।०४।।

मानवता ही धर्म है, “पाठक” का यह मर्म है।
आहत कोई हो नहीं, सीमा में हर कर्म है।।
समता एक विचार है, एक सूत्र में हार है।
मोती बिखरे तो सदा, रहता पड़े किनार है।।
शासन के इस दौर का, उर आनंद उठाइए।
आजादी के मूल्य को, जरा समझने आइए।।०५।।

गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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