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उफ़. ! गर्मी – रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान ‘

उफ.!गर्मी

बढ़‌ और रही है उफ.!गर्मी,
दिख नहीं रही कुछ भी नर्मी,
छाया नीचे भूखा-प्यासा,जीवन जलता है।
कहीं एक पत्ता हिलता है?!।

सुबह हुई सब भाग रहे हैं,
व्याकुल हो सब जाग रहे हैं,
सूर्य बदन से लिपट रहा जो,दिल को छिदता हैं।
कहीं एक पत्ता हिलता है?।।

ताल-तलैया जो दिखते हैं,
जलचर वहाॅं कहाॅं मिलते हैं।
धरती बैठी सीना फाड़े,तन-मन डिगता है।
कहीं एक पत्ता हिलता है?।।

निगल रही धरती हरियाली,
जीवन-रेखा मिटने वाली,
खड़ी हुई है आशा नभ पर,जलपुर दिखता है।
कहीं एक पत्ता हिलता है?।।

न जाने कहीं और बढ़ेगा,
जनजीवन भू पर कहरेगा,
जल-दुग्ध नहीं माॅं के स्तन शिशु,रोता मिलता है।
कहीं एक पत्ता हिलता है?।।

जिसने भी संघर्ष किया है,
आगे चलकर हर्ष किया है,
जो छूट गया वो सूख गया,धूॅं-धूॅं जलता है।
कहीं एक पत्ता हिलता है?।।

ग्रीष्मकाल इस बार मिला है,
बच्चा सम्मुख पुष्प खिला है,
सुबह शाम ही लिखते-पढ़ते,घर में टिकता है।
कहीं एक पत्ता हिलता है?।।


रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर प्रखंड पंडारक पटना बिहार

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