लगता बड़ा सलोना चॉंद
जैसे कोई खिलौना चॉंद।
मन को मेरे भाता यह
पर बड़ा इठलाता यह।
दिखता नहीं हमेशा एक
जैसे इसके रूप अनेक।
दिन में है छिप जाता यह
रात निकल फिर आता यह।
तारों के संग मुस्काता है
शीतल रौशनी फैलाता है।
छोटा बड़ा होकर माने
लगता जैसे जादू जाने।
सब कहते हैं चंदा मामा
कोई देता उनसे उपमा।
जिसे निहारता है चकोर
लुका-छिपी मेघ से होड़।
हमको यह समझ न आए
मॉं क्यों चॉंद मुझे बुलाए।
शायद मॉं का यही अरमान
मुझको जान सके जहान।
है मॉं के सपनों को पर देना
बनकर मुझको चॉंद सलोना।
अब आसमान में उठना है
जग को रौशन करना है।
राम किशोर पाठक
प्राथमिक विद्यालय भेड़हरिया
इंगलिश, पालीगंज, पटना
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