जीवन मे प्रेम का आधार हो ,
इसमें न छल व्यापार हो ।
न कालिमा -सी बात हो ,
न, छुपा रुस्तम आगाज़ हो ।
चरण पड़े जहाँ- जहाँ ,
बरस पड़े सुगंध वहाँ – वहाँ ।
सुमन पवन खिल उठे ,
हर चेहरा बिहँस उठे ।
केवल काम की ही बात हो ,
न कोई पक्षपात हो ।
दिल से दिल भी जा मिले ,
मन सुमन प्रसन्न खिले ।
न केवल दिवा की ही बात हो ,
निशा का भी साथ हो ।
जन ; जमीन से जुड़ें ,
न सदा व्योम में उड़ें ।
न हो किसी से छल -कपट ,
न हो कोई झूठी रपट ।
न हो अवरुद्ध किसी का रास्ता ,
केवल प्रीत का हो वास्ता ।
सदा करें अच्छा यतन ,
खुशबू फैले चहुँ वतन ।
सभी शान से जियें ,
न आन के लिए मरें ।
समय की कद्र सब करे
न कोई विष वपन करे ।
रचयिता :-
अमरनाथ त्रिवेदी
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय बैंगरा
प्रखंड -बंदरा ( मुज़फ़्फ़रपुर )
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