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चिड़िया रानी – रूचिका

Ruchika

चूँ चूँ करती चिड़िया आती

दाना-पानी कहाँ से लाती।

क्या खाती और क्या वह पीती,

बोलो बोलो कैसे वह जीती।।

खेतों में, खलिहानों में,

हरे-भरे मैदानों में,

घर के आँगन, मुँडेरो पर,

दाना चुगती चिड़िया रानी।

नदी, तालाब, पोखरें या फिर

जो दिख जाएँ, पीती पानी।।

चूँ चूँ करती चिड़िया रानी

कहाँ है उसका रैन बसेरा।

कहाँ बिताती है वो रातें,

कहाँ होता है उसका सवेरा।।

घरों में या बागानों में,

खिड़की और दरवाजों पर।

छतों और मुँडेरों पर

या फिर पेड़ की शाखाओं पर।

बनाती है वह रैन बसेरा।

वहीं बिताती है अक्सर वो,

रात या फिर अपना सवेरा।।

तिनका-तिनका जोड़ तृण का,

घोंसला वह बनाती है।

बड़ी मेहनत से सजा-सँवारकर,

उसमें खुद को बचाती है।।

उड़ती है वह उन्मुक्त गगन,

हो अपनी ही धुन में मगन।

ऐसी है आती चिड़िया रानी।

रूचिका
रा. उ. म. वि. तेनुआ, गुठनी सीवान, बिहार

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